इतिहास का सही लेखन अति आवश्यक: धूमल

इतिहास का सही लेखन अति आवश्यक: धूमल

हमीरपुर:- पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा है कि जो देश, समाज और कौम अपने इतिहास को नहीं जानते तथा उस पर गौरव नहीं करते, उनका अस्तित्व अक्सर मिट जाता है। धूमल रविवार को हमीरपुर के निकट ठाकुर जगदेव चंद ठाकुर स्मृति शोध संस्थान में आजादी का अमृत महोत्सव के तहत “भारतीय स्वाधीनता आंदोलन: वृत्तांत, स्मृत्तियां एवं नेपथ्य-नायक” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद एवं वेबीनार के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। यह दो दिवसीय परिसंवाद भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद और केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के इतिहास विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया। इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इतिहास का महत्व हमें आज पता चल रहा है। लेकिन, ठाकुर जगदेव चंद ठाकुर स्मृति शोध संस्थान के संस्थापक ठाकुर राम सिंह ने दशकों पहले यह समझ लिया था। इसलिए उन्होंने भारतीय इतिहास के संकलन पर विशेष बल दिया था।

 

धूमल ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय इतिहास को एक सोची-समझी रणनीति एवं साजिश के तहत विकृत कर दिया गया था, जिससे हमें राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से गुलाम बनाने के प्रयास किए गए। उन्होंने कहा कि योग, वेद, आयुर्वेद और अन्य प्राचीन परंपराएं एवं विधाएं भारतीय सभ्यता की ही देन है। उन्होंने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लाखों ऐसे लोगों का भी योगदान रहा है, जिनके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी कालखंड का इतिहास उस समय का एक आइना होता है। इसलिए सही इतिहास का लेखन अति आवश्यक है। धूमल ने कहा कि नेरी में आयोजित दो दिवसीय परिसंवाद में शिरकत करने वाले विद्वानों के शोधपत्रों से भारतीय इतिहास के कई नेपथ्य नायकों की गौरव गाथाएं सामने आएंगी और नई पीढ़ी को इनसे प्रेरणा मिलेगी। वर्तमान दौर की चर्चा करते हुए धूमल ने कहा कि आज हमारा देश सशक्त हो रहा है तथा अमेरिका जैसी महाशक्तियां भी भारत पर गर्व कर रही हैं। उन्होंने प्रत्येक नागरिक से राष्ट्रवादी शक्तियों का साथ देने का संकल्प लेने की अपील भी की। समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज तथा कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बावजूद हमारी समृद्ध संस्कृति और सभ्यता का अस्तित्व आज भी कायम है। गुलामी के दौर में असंख्य योद्धाओं और सेनानियों से अपना सर्वस्व न्योछावर करके हमारे इस अस्तित्व को कायम रखने तथा देश को आजाद करवाने मंे बहुत बड़ा योगदान दिया है। वीरेंद्र कंवर ने कहा कि दुर्भाग्यवश, इन असंख्य नायकों को हमारे इतिहास में वाजिब स्थान नहीं मिल पाया है। इसलिए भारतीय इतिहास के सही संकलन की आवश्यकता है। आजादी के बाद इस दिशा में पहला प्रयास ठाकुर राम सिंह ने ही किया था और इसके लिए उन्होंने नेरी में शोध संस्थान के रूप में एक बहुत बड़े प्रकल्प की नींव रखी थी। भारतीय इतिहास के संकलन में यह संस्थान निःसंदेह बहुत बड़ी भूमिका अदा करेगा। राष्ट्रीय परिसंवाद के आयोजन के लिए शोध संस्थान के पदाधिकारियों को बधाई देते हुए वीरेंद्र कंवर ने कहा कि यहां दो दिनों के दौरान जो शोध पत्र पढ़े गए हैं, उनके माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को सही एवं तथ्यात्मक इतिहास पढ़ने को मिलेगा। इस अवसर पर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रोफेसर कुमार रत्नम ने अध्यक्षीय उद्बोधन रखा तथा नेरी के शोध संस्थान को भविष्य में भी परिषद की ओर से हरसंभव मदद का विश्वास दिलाया। समापन सत्र में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सलाहकार डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखे। शोध संस्थान के निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग ने परिसंवाद के संबंध में विस्तृत जानकारी दी तथा संस्थान की गतिविधियों का ब्यौरा प्रस्तुत किया। डॉ. कंवरदीप चंद्र ने परिसंवाद की रिपोर्ट प्रस्तुत की। महासचिव भूमि दत्त शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया।

 

कार्यक्रम के दौरान प्रेम कुमार धूमल ने मंगत राम डोगरा की पुस्तक डुग्गर तरगनी, सुमेर खजूरिया की दो पुस्तकों अरहत कोशिक वाकुला और डी-लिमिटेशन ऑफ सीट्स इन जम्मू-कश्मीर तथा प्रोफेसर अरुण कुमार की पुस्तक पंडित दीन दयाल उपाध्याय विचार दर्शन का विमोचन भी किया।